-: संस्थापिका :-

संस्थापिका - श्री कृष्णप्रिया ‘बेटीजी’ महाराज
विद्यालय की संस्थापिका वल्लभ वंशजा श्री कृष्णप्रिया ‘बेटीजी’ का प्राक्ट्य संवत् 1980 (सन्1923) में आषाढ़ की गुरू पूर्णिमा को हुआ। आपको बचपन से पिताश्री षष्ठपीठाधीस्वर गोस्वामी श्री मुरलीधर लाल जी महाराज एवं माताश्री श्री प्रेमप्रिया बहूजी महाराज से अपार स्नेह प्राप्त हुआ।

भगवान श्री कृष्ण की भक्ति तथा श्री वल्लभाचार्यजी के आदेशों उपदेशो को अपने जीवन में आत्मसात् करने वाली श्री कृष्णप्रिया ‘बेटीजी’ को मात्र 11 वर्ष की आयु तक भागवत के छः स्कन्द कँठस्थ हो गये थे। बहुत कम उम्र से ही अपने जीवन का अधिकांश समय आप प्रभु की सेवा एवं स्वाध्याय में व्यतीत करती। अपने जीवन का एक दशक आपने एकान्त साधना तथा आध्यात्मिक चिन्तन में व्यतीत किया। अपने एकान्तवास के दौरान ही आपश्री को यह प्रतीत हुआ कि समाज, देश एवं विश्व का कल्याण तभी सम्भव है, जब सर्वजन धर्म एवं नैतिकता की राह पर चलें। अतः इसीलिए प्रथम बार संवंत 2006 विक्रमपौष में उत्तर-भारत के अनेक स्थानों की आपने यात्रा की और लोगों में धर्म के साथ-साथ आधुनिक जीवन में शान्ति तथा सुख-प्रप्ति के वास्तविक साधनों का उपदेश दिया।

अपनी प्रथम धर्म-यात्रा के पश्चात् श्री कृष्णप्रिया ‘बेटीजी’ ने यह अनुभव किया कि सांस्कृतिक तथा धर्म की नगरी काशी में कृष्णभक्ति, वल्लभदर्शन तथा धर्म का व्यापक-प्रचार करने के लिए आधुनिक युग और समाज की आवश्यकमाओं को ध्यान में रखते हुए आध्यात्मिक, शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना अत्यन्त आवश्यक है। अतः सर्वप्रथम आपने 27 अप्रैल 1952 को श्री शुद्धाद्वैत पुष्टिमार्गीय महिला मण्डल की स्थापना कालभैरव के निकट स्थित श्री राधामोहन कुंज में की। तत्पश्चात् आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक शिक्षा के प्रचार के लक्ष्य को सम्मुख रखकर सन् 1957 में समिति की शैक्षिक एवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियों को मूर्तरूप देने हेतु बालक-बालिकाओं के लिए श्री व. वि. की स्थापना एक प्राइमरी पाठशाला के रूप की। इस विद्यालय का उद्धघाटन भारत प्रसिद्ध वयोवृद्ध विद्वान महामहोपाध्याय पण्डित श्री गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी जी के करकमलों से सम्पन्न हुआ। परन्तु विद्यालय की स्थापना के आठ माह पश्चात् ही मात्र 35 वर्ष की अवस्था में श्री कृष्णप्रिया ‘बेटीजी’ गोलोकधाम प्रयाण कर गयी, यह विद्यालय परिवार के लिए अपूरणीय क्षति थी। श्री कृष्णप्रिया ‘बेटीजी’ के वैकुण्ठधाम प्रयाण के पश्चात् उनकी अनुजा श्री शरदवल्लभा ‘बेटीजी’ ने उनके सपनों को पंख लगाया और विद्यालय की उन्नति हेतु तन, मन, धन से जुट गयी। एक लम्बी अवधि तक श्री शरदवल्लभा ‘बेटीजी’ ने विद्यालय की निस्वार्थ भाव से सेवा की और अपनी अग्रजा के सपनों को पूरा करने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन विद्यालय की प्रगति के लिए समर्पित कर दिया। श्री शरदवल्लभा ‘बेटीजी’ के नित्यलीलास्थ होने के पश्चात् वर्तमान में विद्यालय प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष श्रद्धेय गोस्वामी कल्याण राय जी महाराज श्री विद्यालय के उत्थान एवं सर्वागीण विकास के लिए प्रयत्नशील है।

आज भी यह विद्यालय अपनी संस्थापिका श्री कृष्णप्रिया ‘बेटीजी’ के उन वचनों के लिए कटिबद्ध है जो वह अपने उपदेशों में अक्सर कहा करती थी

‘‘मंगल की मंगलकामना एवं मंगलसन्देश के द्वारा ही विश्व का मंगल होता रहे।"